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मैं, तुम और कलम..

Ashutosh_Shukla
Ashutosh_Shukla
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एक अरसा हो गया..

मेरी क़लम और तुम्हारी बातें हुए.

हालाकी दिल तो रोज करता है बातें..

तुमसे, तुम्हारी यादों से, तुम्हारे सपनों से,

करे भी तो क्या? कुछ कह भी तो नही सकता

ना तुमसे, और ना ही अपने अपनों से..

सोचता हू क्या तुम्हे भी याद आता है वो सब?

वो दिन..जब मेरे हर पल पे

सिर्फ़ तुम्हारा हक़ होता था..

वो रातें, जब ख्वाबों की सवारी सिर्फ़ तुम्हारे पास रुकती थी..

और तुम्हे भी साथ लेके, निकल पड़ती थी एक सुहाने सफ़र पर..

वो भी क्या पल थे ना?

तब सपने भी सिर्फ़ सुहाने आते थे..

अब तो सपनो से भी डर सा लगता है..

क्यों?? तुम तो जानती ही हो..

ashutosh

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