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मे कुछ भी करने चलता हू तब याद तुम्हारी आती है,
मे तन्हा बैठा रहता हू तब याद तुम्हारी आती है.
जब आँखे नाम हो जाती हैं तब याद तुम्हारी आती है,
जब ये आँखे मुस्काती है तब याद तुम्हारी आती है.
जब नये स्वप्न मे बुनता हू तब याद तुम्हारी आती है,
जब दिल की बाते सुनता हू तब याद तुम्हारी आती है.
हाथो मे कलाम जब होती है तब याद तुम्हारी आती है,
बातें जब रस्ता खोती है तब याद तुम्हारी आती है.
जब होठ मेरे मुस्काते हैं तब याद तुम्हारी आती है,
जब गीत कोई वो गाते हैं तब याद तुम्हारी आती है.
जब आँखे रहती बंद मेरी तब चेहरा तेरा दिखता है,
जैसे ही आँखे खुलती हैं तब याद तुम्हारी आती है.
बैठे बैठे खो जाता हू तब याद तुम्हारी आती है,
जगते जगते सो जाता हू तब याद तुम्हारी आती है.
दीवारो से टकराता हू तब याद तुम्हारी आती है,
जब खुद मे ही खो जाता हू तब याद तुम्हारी आती है.
खाली कमरों मे बैठा हू तब याद तुम्हारी आती है,
आँधियारो मे जब लेटा हू तब याद तुम्हारी आती है.
जब नदी किनारे बैठा हू पानी मे मे पत्थर फेंकू,
पानी की लहरे चलती हैं तब याद तुम्हारी आती है.
गर्मी की तपती धूपो मे जब सूनसान सी सड़कों पर,
बस मे ही मे जब दिखता हू तब याद तुम्हारी आती है.
जब नई पंक्ति मे लिखता हू तब याद तुम्हारी आती है,
जब दोबारा दोहराता हू फिर याद तुम्हारी आती है.
जब गा के इसे सुनता हू तब याद तुम्हारी आती है,
फिर बैठ के सोचा करता हू क्यू याद तुम्हारी आती है…..?
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